पूर्व वित्त सचिव का खुलासा: अमेरिका संग व्यापार समझौते पर भारत का रुख सख्त

नई दिल्ली। ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत और अमेरिका के रिश्तों में खटास आने लगी है। भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर करवाने का क्रेडिट न मिलने के बाद से ही डोनाल्ड ट्रंप दोनों देशों के दशकों पुराने रिश्तों को तार-तार करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। ट्रंप प्रशासन ने भारत पर 50 प्रतिशत का टैरिफ लगा दिया है।

अमेरिका का रवैया देखने के बाद भारत ने भी झुकने से साफ इनकार कर दिया है। वहीं, अब खबर सामने आ रही है कि भारत, अमेरिका के साथ ट्रेड डील पर भी हाथ पीछे खींच सकता है।

ट्रंप के दावों को किया खारिज

बातचीत के दौरान देश के पूर्व वित्त सचिव सुभाष गर्ग ने कई बड़े दावे किए हैं। उनका कहना है कि ट्रंप लगातार कह रहे हैं कि रूस से सस्ते दाम पर तेल खरीदकर भारत तगड़ा मुनाफा कमा रहा है। हालांकि, ट्रंप का यह बयान महज एक राजनीतिक स्टंट है, आर्थिक वास्तविकता कुछ और ही है।

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रूस से तेल खरीदने पर भारत को कितना मुनाफा?

सुभाष गर्ग के अनुसार, रूस से तेल खरीदने पर भारत को साल भर में 2.5 बिलियन डॉलर (तकरीबन 2.22 लाख करोड़) की बचत हो रही है। ट्रंप इन आंकड़ों को बढ़ा-चढ़ाकर बता रहे हैं और भारत पर टैरिफ लगाने के लिए इसे हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं।

रूस से तेल का गणित समझाते हुए पूर्व वित्त सचिव ने कहा कि रूस से भारत 3-4 डॉलर (264-352 रुपये) प्रति बैरल के हिसाब से तेल खरीदता है। ट्रंप इसे राजनीतिक हथकंडे की तरह इस्तेमास कर रहे हैं। मगर सच तो यह है कि भारत वैश्विक कीमत के अंतर्गत की रूस से तेल खरीद रहा है और इसमें किसी अंतरराष्ट्रीय समझौते का उल्लंघन नहीं किया गया है।

ट्रेड डील पर क्या बोले पूर्व वित्त सचिव?

भारत और अमेरिका की ट्रेड डील पर बात करते हुए सुभाष गर्ग कहते हैं कि, नई दिल्ली ने पहले ही हाथ पीछे खींच लिए हैं। सुभाष गर्ग के अनुसार, इतने टैरिफ के साथ कोई व्यापार नहीं करना चाहेगा। मगर, भारत ने औपचारिक रूप से दरवाजे बंद नहीं किए हैं।

सुभाष गर्ग का कहना है कि ट्रेड डील पर अमेरिका की शर्तें काफी सख्त थीं। खासकर कृषि और उपभोक्ता वस्तुओं को लेकर भारत समझौता नहीं करेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी साफ कर दिया है कि अमेरिका चाहे जितना भी दबाव बना ले, भारत देश के किसानों के हितों से समझौता नहीं करेगा।

चीन से रिश्ते सुधारने की दी सलाह

चीन के साथ भारत के रिश्तों पर बात करते हुए सुभाष गर्ग कहते हैं कि चीन से आने वाले सभी निवेशों पर पाबंदी लगाना हमारी सबसे बड़ी गलती रही है। चीनी निवेशकों के लिए बाजार खोलकर हम अन्य देशों पर अपनी निर्भरता कम कर सकते हैं।

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