Shubhanshu Shukla Return: भारत का लाल धरती पर लौट आया है. वो इतिहास बनाकर आया है, वो अंतरिक्ष नाप कर आया है. Axiom-4 मिशन के तहत इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन गए शुभांशु शुक्ला 3 अन्य अंतरिक्ष यात्रियों के साथ धरती पर वापस आ गए हैं. चारों अंतरिक्ष यात्रियों को लेकर SpaceX का ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट भारतीय समयानुसार दोपहर के 3.01 बजे अमेरिका के कैलिफोर्निया राज्य में सैन डिएगो में तट के पास प्रशांत महासागर में स्प्लैशडाउन कर गया. 4 पैराशूट की मदद से यह कैप्सूल समंदर में गिरा है. अब कैप्सूल को पानी से निकालकर एक विशेष रिकवरी जहाज पर रखा जाएगा, जहां से अंतरिक्ष यात्रियों को कैप्सूल से बाहर निकाला जाएगा. Axiom-4 के चारों क्रू मेंबर की जहाज पर ही कई चिकित्सीय जांच की जाएंगी. इसके बाद वे तट पर आने के बाद एक हेलिकॉप्टर में सवार होंगे.
शुभांशु शुक्ला के साथ इस मिशन पर तीन और अंतरिक्ष यात्री गए थे. NASA की पूर्व अंतरिक्ष यात्री और Axiom Space में मानव अंतरिक्ष उड़ान की डायरेक्टर पैगी व्हिटसन इस मिशन की कमांडर थी. ISRO के अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला ने पायलट के रूप में काम किया. वहीं दो मिशन स्पेशलिस्ट भी थे- पोलैंड के स्लावोस्ज उज़्नान्स्की-विल्निविस्की और हंगरी के टिबोर कापू.
#WATCH | In a historic moment, Group Captain Shubhanshu Shukla and the Axiom-4 crew aboard Dragon spacecraft splashes down in the Pacific Ocean after an 18-day stay aboard the International Space Station (ISS)
(Video Source: Axiom Space/YouTube) pic.twitter.com/qLAq2tyW5S
— ANI (@ANI) July 15, 2025
डी-ऑर्बिट बर्न से स्प्लैशडाउन तक, कैसे धरती पर आएं चारों जांबाज
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन से लेकर धरती पर आने तक, ड्रैगन स्टेसक्राफ्ट ने लगभग 22-23 घंटे का सफर तय किया. स्पेस स्टेशन के आसपास के सुरक्षित क्षेत्र से बाहर निकलने के बाद, कैप्सूल में बैठे अंतरिक्ष यात्रियों ने अपने स्पेससूट उतार दिए थे. धरती पर स्प्लैशडाउन के लगभग 34 मिनट पहले डी-ऑर्बिट बर्न की प्रक्रिया खत्म हुई. डी-ऑर्बिट बर्न की प्रक्रिया 18 मिनट तक चली और इसके शुरू होने से ठीक पहले ही अंतरिक्ष यात्रियों ने अपना स्पेससूट पहन लिया.
दरअसल जब कोई स्पेसक्राफ्ट पृथ्वी का चक्कर काट रहा होता है और उसे वापस धरती पर लाना होता है, तो उसकी गति को कम करना आवश्यक होता है ताकि वह कक्षा से बाहर निकलकर पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश कर सके. इसी गति को कम करने के लिए अंतरिक्ष यान के थ्रस्टर्स (छोटे इंजन) को एक निश्चित समय और दिशा में दागा जाता है. इस प्रक्रिया को ही ‘डी-ऑर्बिट बर्न’ कहते हैं.
इसके बाद ड्रैगन कैप्सूल लगभग 28163 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से धरती के वायुमंडल में गुजरा. इस रफ्तार से जब कैप्सूल गुजरता है तो वायुमंडल से रगड़ खाता है और घर्षण यानी फ्रिक्शन की वजह से तापमान 3,500 डिग्री फैरनहाइट तक पहुंच जाता है. ठीक यही हुआ और कैप्सूल आग के गोले जैसा दिखने लगा. हालांकि इसका कोई असर अंतरिक्ष यात्रियों को महसूस नहीं हुआ. SpaceX के अनुसार स्पेसक्राफ्ट में लगी हीट शील्ड यह सुनिश्चित करने में मदद करती है कि अंदर का तापमान कभी भी 85 डिग्री फैरनहाइट (लगभग 29-30 डिग्री सेल्सियस) से ऊपर न जाए.
इसके बाद बारी आई पैराशूट की. शुरू में दो पैराशूट खुले और उन्होंने ड्रैगन कैप्सूल की रफ्तार को कम किया. इसके बार दो और पैराशूट खुले और उनकी कुल संख्या 4 हो गई. कैप्सूल की रफ्तार कम होकर लगभग 24 किमी प्रति घंटे तक आ गई. इसी रफ्तार से कैप्सूल समुंदर में गिरा. इसके बाद अंतरिक्ष यात्री कैप्सूल के अंदर ही बैठे रहे. अब एक ग्राउंड टीम वहां पहुंचेगी और कैप्सूल को समुंदर से बाहर निकालेगी. इसके बाद कैप्सूल को खोलकर अंदर बैठे अंतरिक्ष यात्रियों को बाहर निकाला जाएगा.